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Rahul Gandhi ka ‘Votechori’ Campaign aur Opposition ka ECI March: Kya hai ye Voter Transparency ka Scene?

11 अगस्त 2025 को, भारत के विपक्षी दल, इंडिया गठबंधन के नेतृत्व में, चुनाव आयोग (ईसीआई) के कार्यालय की ओर मार्च करने जा रहे हैं, ताकि 2024 लोकसभा चुनावों में कथित “‘Votechori” के खिलाफ विरोध दर्ज किया जा सके। इस अभियान के अगुआ, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने “वोटचोरी” नामक एक वेबसाइट शुरू की है, जिसका उद्देश्य जनता को एकजुट करना और मतदाता सूची में पारदर्शिता की मांग करना है। आइए इस विवादास्पद मुद्दे को समझते हैं।

‘Voter Theft’ ka Allegation

राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी का दावा है कि उनकी आंतरिक जांच में बेंगलुरु के महादेवपुरा निर्वाचन क्षेत्र (बैंगलोर सेंट्रल लोकसभा सीट का हिस्सा) में 100,250 से अधिक वोटों में हेरफेर के सबूत मिले हैं। इनमें डुप्लिकेट मतदाता, फर्जी पते, सामूहिक पंजीकरण और अवैध तस्वीरें शामिल हैं। विपक्ष का आरोप है कि महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और बिहार जैसे राज्यों में भी ऐसी अनियमितताएं हुई हैं, खासकर महाराष्ट्र में 40 लाख “भूत मतदाताओं” की बात कही गई है। गांधी ने ईसीआई पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है, इसे “लोकतंत्र के खिलाफ बड़ा आपराधिक धोखा” बताया है।

Votechori’ Website kya hai?

10 अगस्त 2025 को लॉन्च की गई “वोटचोरी” वेबसाइट (http://votechori.in/ecdemand) मतदाता सूचियों को सार्वजनिक ऑडिट के लिए उपलब्ध कराने की मांग करती है। लोग एक मिस्ड कॉल देकर इस अभियान में शामिल हो सकते हैं। गांधी इसे “एक व्यक्ति, एक वोट” के सिद्धांत को बचाने की लड़ाई बताते हैं।

Opposition ka Protest March

11 अगस्त का मार्च बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में 8 अगस्त को हुई रैली का हिस्सा है, जिसमें गांधी, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार शामिल थे। शशि थरूर, मल्लिकार्जुन खड़गे, सचिन पायलट, कपिल सिब्बल, आदित्य ठाकरे और शरद पवार जैसे नेताओं ने इस अभियान का समर्थन किया है। बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले चल रही मतदाता सूची की विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए गए हैं, जिसमें मुस्लिम, दलित और पिछड़े समुदायों को निशाना बनाने का आरोप है।

ECI aur BJP ka Response

ईसीआई ने गांधी के आरोपों को “निराधार” और “गैर-जिम्मेदाराना” बताते हुए खारिज किया है, और उनसे पंजीकरण ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के तहत हस्ताक्षरित घोषणा पत्र जमा करने या सार्वजनिक माफी मांगने को कहा है। ईसीआई का कहना है कि मतदाता सूचियां पारदर्शी तरीके से तैयार की जाती हैं। बीजेपी नेताओं, जैसे रविशंकर प्रसाद और संबित पात्रा, ने कांग्रेस पर हार का ठीकरा फोड़ने का आरोप लगाया है, यह दावा करते हुए कि ईसीआई स्वतंत्र रूप से काम करता है।

Kya hai Stake pe?

यह विवाद भारत के चुनावी तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। अगर विपक्ष के दावे सही साबित हुए, तो यह लोकतंत्र में जनता के विश्वास को कमजोर कर सकता है। लेकिन बिना ठोस सबूतों के, ये आरोप राजनीतिक लाभ के लिए उठाए गए कदम माने जा सकते हैं। बिहार की मतदाता सूची संशोधन पर ध्यान केंद्रित होने से आगामी चुनावों पर असर पड़ सकता है। विपक्ष का मार्च और “वोटचोरी” अभियान भारत के राजनीतिक परिदृश्य में गहरे मतभेदों को उजागर करता है। ईसीआई और बीजेपी के जवाब के बीच, जनता को इन गंभीर आरोपों पर स्पष्टता का इंतजार है। लोकतंत्र के लिए पारदर्शिता जरूरी है, और यह मुद्दा जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

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